Scam 2003 का मामला भारतीय स्टॉक मार्केट के इतिहास का एक काला अध्याय था, जिसमें Ketan Parekh, एक स्टॉकब्रोकर, ने मार्केट को अपनी मर्जी से हेरफेर किया। पेरेख ने कुछ छोटे, अज्ञात कंपनियों के शेयरों को अपने नियंत्रण में लिया और उनके भाव को कृत्रिम रूप से बढ़ा दिया। इसके लिए उन्होंने सर्कुलर ट्रेडिंग जैसी धोखाधड़ी की तकनीकों का इस्तेमाल किया, जिसमें शेयर एक ही दलाल से दूसरे दलाल तक बार-बार बिकते थे, ताकि उनके मूल्य में वृद्धि दिखाई जाए। जब यह घोटाला खुला, तो लाखों निवेशकों को भारी नुकसान हुआ और पेरेख को गिरफ्तार कर लिया गया।
Scam 2003 को दार्शनिक दृष्टिकोण से समझने के लिए हम उपयोगितावाद और कर्तव्यवाद (Deontology) के सिद्धांतों का उपयोग कर सकते हैं।
Scam 2003 में पेरेख की लालच और अत्यधिक महत्वाकांक्षा स्पष्ट रूप से दिखती है। दार्शनिक दृष्टिकोण से इसे हम हब्रीस (Hubris) कह सकते हैं, जो ग्रीक साहित्य में अत्यधिक गर्व और अहंकार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पेरेख का अत्यधिक आत्मविश्वास और धन की इच्छा उसे अपने नैतिक दायित्वों से विमुख कर देती है। यह लालच और अभिमान उसके पतन का कारण बनते हैं, जैसा कि ग्रीक त्रासदियों में दिखाया गया है, जैसे सोफोकल्स की “ओडीपस रेक्स” या ऐशक्यलस की “प्रोमीथियस बॉन्ड”।
इस घोटाले में विश्वास और शक्ति के बीच संबंध पर भी दार्शनिक विश्लेषण किया जा सकता है। जीन-जैक्स रूसो और थॉमस हॉब्स जैसे दार्शनिकों ने समाज के सिद्धांतों को इस पर आधारित बताया कि लोग एक दूसरे पर विश्वास करते हैं। जब यह विश्वास टूटता है, जैसे पेरेख ने किया, तो समाज में अस्थिरता उत्पन्न होती है। पेरेख के धोखाधड़ी ने भारतीय स्टॉक मार्केट के भीतर विश्वास का नुकसान किया और परिणामस्वरूप आर्थिक और सामाजिक असंतुलन का कारण बना।
Scam 2003 से जो मुख्य शिक्षा मिलती है, वह नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी पर आधारित है। अरस्तू की “वर्चुअस एथिक्स” के अनुसार, एक आदर्श जीवन वही है जिसमें व्यक्तिगत लाभ और सामाजिक भलाई के बीच संतुलन होता है। पेरेख ने इस संतुलन को खो दिया। इसके अलावा, इस घोटाले से यह भी पता चलता है कि नियंत्रण और पारदर्शिता का महत्व कितना ज्यादा है। अगर मार्केट में पारदर्शिता और मजबूत नियम होते, तो पेरेख जैसी धोखाधड़ी से बचा जा सकता था।
अंततः, Scam 2003 यह सिद्ध करता है कि धन और शक्ति की असीम लालच और नैतिक मूल्यों की अनदेखी किसी भी समाज और व्यक्ति के लिए हानिकारक होती है। दार्शनिक दृष्टिकोण से यह हमें यह सिखाता है कि सफलता केवल समाज के भले और नैतिकता के आधार पर ही सार्थक होती है।