“Lucky Bhaskar” एक दिलचस्प कहानी है जो मानव नैतिकता, लालच और पछतावे के गहन पहलुओं की पड़ताल करती है। फिल्म भारतीय और वैश्विक दर्शन के कई सिद्धांतों से जुड़ी है। आइए इसे दार्शनिक दृष्टिकोण से समझें:
1. नैतिकता और विवेक का प्रश्न: इमैनुएल कांट (Immanuel Kant) का दृष्टिकोण
भास्कर का आरंभिक जीवन लालच और भ्रष्टाचार से प्रेरित था। यह कांट की नैतिकता की अवधारणा “कर्तव्यनिष्ठा” का उल्लंघन करता है। कांट के अनुसार, नैतिक कार्य वही हैं जो केवल कर्तव्य के लिए किए जाते हैं, न कि स्वार्थ या परिणामस्वरूप लाभ के लिए।
- भास्कर ने अपने फायदे के लिए नियमों का उल्लंघन किया, लेकिन कटरिया बैंक के मैनेजर की मृत्यु ने उसे आत्मविश्लेषण पर मजबूर कर दिया। यह क्षण कांट के “विवेक” (Categorical Imperative) के समान है, जहां व्यक्ति अपने आचरण को नैतिक रूप से पुनर्मूल्यांकन करता है।
2. लालच और मोह: भारतीय दर्शन में “माया” की अवधारणा
भास्कर की लालच और धन की अंधी दौड़ भारतीय दर्शन की “माया” की अवधारणा से मेल खाती है। “माया” व्यक्ति को सत्य और अनित्य के बीच भ्रमित करती है।
- भास्कर का परिवर्तन “माया” के प्रभाव से मुक्ति का प्रतीक है। कटरिया बैंक के मैनेजर की मृत्यु ने उसे यह अहसास कराया कि धन और शक्ति क्षणिक हैं।
3. जिम्मेदारी और नैतिक पुनर्प्राप्ति: अरस्तू (Aristotle) का नैतिक चरित्र
अरस्तू के “नैतिक पुनर्प्राप्ति” (Moral Redemption) के सिद्धांत के अनुसार, एक व्यक्ति अपने कार्यों के परिणामों को समझने के बाद पुनः सही मार्ग पर आ सकता है।
- भास्कर का अमेरिका जाकर एक नई शुरुआत करना अरस्तू के “Virtuous Life” की ओर बढ़ने का प्रतीक है। उसने अपने परिवार को शर्मिंदगी से बचाने के लिए नैतिक पुनरुद्धार चुना।
4. सत्ता और भ्रष्टाचार: थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes) का “लीवायथन”
फिल्म सत्ता और भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को भी उजागर करती है। हॉब्स के “लीवायथन” के अनुसार, मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी होता है, और सत्ता उसे और अधिक भ्रष्ट बना सकती है।
- भास्कर के बॉस और बैंक के चेयरमैन का भ्रष्टाचार इस विचारधारा को सही ठहराता है।
5. निर्णय का क्षण: “भगवद गीता” का कर्म योग
जब भास्कर अपने बॉस के दबाव के बावजूद बैंक की रसीदें साइन करने से मना करता है, यह गीता के कर्म योग का उदाहरण है। उसने अपने कर्तव्य को समझा और सही मार्ग पर चलने का साहस किया।
- भास्कर का निर्णय, उसका त्याग और उसके परिवार को बचाने का प्रयास “निष्काम कर्म” का प्रतीक है।
विशेष दार्शनिक उद्धरण
- “धन अनित्य है, परन्तु उसके द्वारा उत्पन्न नैतिक दोष स्थायी हो सकता है।”
यह उद्धरण भास्कर के जीवन की उस यात्रा को दर्शाता है जहां वह लालच से नैतिक पुनर्प्राप्ति तक पहुंचा।