दृश्यम 2 (Drishyam 2) : Movie Review in Hindi

AmanCinema Mein Darshan6 months ago63 Views

कहानी की संक्षिप्त रूपरेखा:*

“दृश्यम 2” विजय सलगांवकर और उनके परिवार की कहानी को आगे बढ़ाती है, जहां 7 साल बाद भी सैम देशमुख की हत्या की गुत्थी सुलझाई नहीं जा सकी है। विजय अब एक सफल व्यवसायी हैं, लेकिन उनके परिवार पर घटना का भावनात्मक और मानसिक प्रभाव गहरा है।

इस बार कहानी में एक नया मोड़ तब आता है जब सैम के माता-पिता और पुलिस को एक नया सबूत मिलता है। विजय की चालाकी और उसकी रणनीतियों का परीक्षण होता है क्योंकि वह अपने परिवार को बचाने के लिए नई योजनाएं बनाता है।

दार्शनिक और नैतिक विश्लेषण:

1. न्याय बनाम बदला:

फिल्म में न्याय और बदले के बीच गहरी खाई दिखती है।

  • विजय का पक्ष: विजय के लिए न्याय का मतलब अपने परिवार को सुरक्षित रखना है, चाहे इसके लिए उसे झूठ बोलना पड़े या कानूनी तंत्र को धोखा देना पड़े।
  • मीरा और महेश का पक्ष: उनके लिए न्याय का मतलब अपने बेटे के लिए सच्चाई और संतोष प्राप्त करना है।

2. नैतिकता और सच्चाई:

फिल्म एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है:

  • क्या एक अपराध को छिपाना सही हो सकता है, यदि इसका उद्देश्य किसी निर्दोष को बचाना हो?
  • क्या विजय के परिवार की सुरक्षा के लिए उसके झूठ को नैतिक रूप से सही ठहराया जा सकता है?

3. सत्य और भ्रम:

“दृश्यम 2” इस बात पर जोर देती है कि सच्चाई को कैसे आसानी से बदला जा सकता है और लोगों को भ्रमित किया जा सकता है।

  • भारतीय दर्शन: यह माया की अवधारणा को फिर से सामने लाती है।
  • आधुनिक दृष्टिकोण: यह बौद्रियार्ड के हाइपररियलिटी सिद्धांत से मेल खाती है, जहां विजय वास्तविकता को एक सजीव कथा के रूप में प्रस्तुत करता है।

पात्रों का विश्लेषण:

विजय सलगांवकर:

  • विजय एक ऐसा व्यक्ति है जो फिल्में देख कर जीवन जीने का तरीका सीखता है। वह एक साधारण इंसान के तौर पर शुरू हुआ, लेकिन परिस्थितियों ने उसे एक असाधारण योजनाकार बना दिया।
  • विजय का चरित्र भारतीय संस्कृति में “धर्म” और “परिवार की रक्षा” के महत्व को दर्शाता है।

मीरा देशमुख:

  • मीरा का संघर्ष उसके व्यक्तिगत दर्द और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच है। वह एक दुखी मां है, लेकिन साथ ही एक सख्त पुलिस अधिकारी भी।

डेविड ब्रागांजा:

  • डेविड फिल्म में एक ऐसा किरदार है जो मौका देखकर अपने फायदे के लिए किसी भी पक्ष का समर्थन करता है।

मुख्य विषय:

1. परिवार की प्राथमिकता:

  • विजय का हर कदम परिवार की सुरक्षा के लिए उठाया गया है। यह भारतीय परिवार व्यवस्था की गहराई को दर्शाता है।

2. न्यायिक प्रणाली की सीमाएं:

  • फिल्म न्यायिक प्रणाली की खामियों को उजागर करती है और यह सवाल उठाती है कि क्या न्याय केवल कानूनी प्रक्रिया से संभव है?

3. नैतिक दुविधा:

  • विजय और मीरा दोनों नैतिकता और न्याय के बीच फंसे हुए हैं।

फिल्म का अंत और संदेश:

फिल्म का अंत विजय के एक और चतुर कदम के साथ होता है, जहां वह सैम के अस्थियों को उसके माता-पिता को सौंपता है, जिससे उन्हें closure मिलता है। यह अंत इस बात पर जोर देता है कि कभी-कभी न्याय और सुकून कानूनी तंत्र से बाहर भी मिल सकते हैं।

“दृश्यम 2” एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि सच और झूठ के बीच की रेखा कितनी धुंधली हो सकती है, और न्याय के मायने परिस्थितियों के अनुसार कैसे बदल सकते हैं।

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