“Bhaag Milkha Bhaag” एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो केवल एक धावक की कहानी नहीं, बल्कि मानव चेतना की सीमाओं को तोड़ने और आत्मा की अपराजेय शक्ति को प्रकट करने का प्रयास करती है। फ़िल्म केवल इतिहास या खेल की जीवनी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के गहरे आध्यात्मिक मूल्यों का प्रतीक है, जिसे “उपनिषदों”, “भगवद गीता”, “महाभारत”, “रामायण” और वैश्विक दर्शन से जोड़कर देखा जा सकता है। फ़िल्म में मिल्खा सिंह की कहानी केवल दौड़ने तक सीमित नहीं, बल्कि आत्म-संघर्ष, आत्म-शोधन और आत्म-प्राप्ति की यात्रा है।
“भाग मिल्खा भाग” का केंद्रीय विचार “कर्मयोग” है, जिसका उद्घोष भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने किया था:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।)
मिल्खा सिंह का जीवन इसी गीता-उक्त वाक्य की व्याख्या है। उन्होंने परिणाम की चिंता किए बिना तपस्वी की तरह प्रयास किया। उनकी मेहनत, संघर्ष और “धैर्य” स्पष्ट करते हैं कि जब व्यक्ति निरंतर कर्म करता है, तो उसकी आत्मा अजेय बन जाती है।
मिल्खा सिंह का जीवन महाभारत के अर्जुन के समान है। अर्जुन की तरह उनका भी एक “धर्म” है — देश के लिए दौड़ना। जब वह पाकिस्तान जाने से इनकार करते हैं, यह “विराट युद्ध” से पहले अर्जुन के मोह की तरह है। लेकिन अंततः, जैसे श्रीकृष्ण अर्जुन को प्रेरित करते हैं, वैसे ही नेहरू का आग्रह और उनके पिता की स्मृति उन्हें कर्तव्य पथ पर अग्रसर करती है।
“रामायण” में श्रीराम का वनवास उनके जीवन का संघर्ष है। इसी तरह मिल्खा का 1947 का बंटवारा उनका वनवास है। उन्होंने अपनी माता-पिता की मृत्यु का दुख सहा और इसके बावजूद अपने जीवन को एक उच्चतम उद्देश्य की ओर समर्पित किया।
योगवशिष्ठ और अद्वैत वेदांत की व्याख्या
“योग वशिष्ठ” में कहा गया है:
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।”
(मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।)
मिल्खा सिंह के जीवन में उनके दर्द और अतीत ने बंधन की तरह काम किया। जब वह रोम ओलंपिक में अपने अतीत की छवि देख कर हार जाते हैं, यह उनके “मन के द्वंद्व” का प्रतीक है। लेकिन अंततः उनका “प्रशिक्षण”, हिमालय की साधना और “दृढ़ निश्चय” उन्हें मोक्ष दिलाते हैं — अर्थात् “द फ्लाइंग सिख” का खिताब।
विदेशी दर्शन: अस्तित्ववाद और नीत्शे का “सुपरमैन” सिद्धांत
फ्रेडरिक नीत्शे का “सुपरमैन” (Übermensch) का विचार कहता है कि मनुष्य अपने आप को साधारण सीमाओं से परे ले जाकर श्रेष्ठता की अवस्था प्राप्त कर सकता है। मिल्खा सिंह ने भी इसी दर्शन को आत्मसात किया।
उनकी साधना और थकावट के बावजूद “त्याग” का दृष्टिकोण — स्टेला के साथ क्षणिक मोह और फिर आत्म-प्रशिक्षण की ओर लौटना — यह “अस्तित्ववाद” (Existentialism) की एक उत्कृष्ट व्याख्या है।
शंकराचार्य ने कहा था:
“ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या।”
(ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब माया है।)
यह “भाग मिल्खा भाग” का मूल है — जब उन्होंने “जगत की माया” (धन, मोह, और व्यर्थ प्रतिस्पर्धा) से स्वयं को मुक्त किया और “सत्य” (अपने कर्तव्य) पर ध्यान केंद्रित किया, तभी वह अपने लक्ष्य तक पहुंचे।
नकारात्मक पक्ष: मानवीय कमजोरी
फ़िल्म में मिल्खा का अतीत और उनके क्षणिक मोह उनकी “मानवीय कमजोरी” को दर्शाते हैं। स्टेला के साथ एक रात बिताना और उसके परिणामस्वरूप हारना — यह दिखाता है कि मानव मन कितना चंचल है। लेकिन इससे बड़ा संदेश यह है कि आत्मबोध के बाद ही मनुष्य अपनी त्रुटियों को सुधारकर आगे बढ़ सकता है।
बृहदारण्यक उपनिषद और आत्मदर्शन
बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार:
“अहम् ब्रह्मास्मि।”
(मैं ब्रह्म हूँ, मैं असीम हूँ।)
मिल्खा सिंह की साधना उनके इस आत्मदर्शन का ही परिणाम है। जब वह पाकिस्तान में खालीक को हराते हैं और “फ्लाइंग सिख” कहलाते हैं, तब यह केवल उनका व्यक्तिगत विजय नहीं, बल्कि “मानव चेतना की अपराजेयता” का उत्सव है।
अष्टावक्र गीता में कहा गया है:
“मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।”
(जो स्वयं को मुक्त समझता है, वह मुक्त है। जो बंधन मानता है, वह बंधा है।)
मिल्खा सिंह की सबसे बड़ी जीत यह है कि उन्होंने अपने अतीत के बंधन को तोड़ा और स्वयं को “मुक्त” किया।
“भाग मिल्खा भाग” हमें सिखाती है कि संघर्ष और आत्म-विजय का मार्ग सनातन है। यह फ़िल्म हमें याद दिलाती है कि:
यह फ़िल्म केवल 400 मीटर की दौड़ नहीं, बल्कि मानवता की अनंत यात्रा है। मिल्खा सिंह का जीवन “पुरुषार्थ” और “आत्म-ज्ञान” का प्रतीक है।
“यतो धर्मस्ततो जयः।” (जहां धर्म है, वहीं विजय है।)
“भाग मिल्खा भाग” युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेगी। यह फ़िल्म मानवीय आत्मा की अजेयता और शाश्वत प्रेरणा का स्रोत है।